ये अल्फ़ाज़ों का सौदा मुस्कान के साथ,
वो अपनों सा सलीखा मेहमान के साथ,
मुझे अपने नज़दीक रखना गुमान के साथ,
ऐ साक़ी, तेरा इश्क़ समझना आसान नहीं।
कभी मेरी पनाहों में तेरा गुम हो जाना,
कभी तेरा मेरे मुझसे नज़दीक आना,
इक पल सब याद, अगले पल भूल जाना,
ऐ साक़ी, तेरा इश्क़ समझना आसान नहीं।
कभी चोट मुझपे मुसलसल तेरी,
कभी फिर बेहिसाब मोहब्बत तेरी,
कभी सिर्फ़ दीदार की इजाज़त तेरी,
ए साक़ी, तेरा इश्क़ समझना आसान नहीं।
कभी तेरी हर महफ़िल की जान मैं,
तेरा ज़मीन-ओ-आसमान मैं,
तेरा दीन धर्म ईमान मैं,
कभी अजनबी अनजान मैं,
ऐ साक़ी, तेरा इश्क़ समझना आसान नहीं।
तन्हाई का कभी तेरे इलाज हूँ,
कभी तेरी ज़िंदगी का साज़ हूँ,
कभी तो मेरा वजूद नहीं,
कभी तेरा हुस्न तेरा मिज़ाज हुँ,
ए साक़ी, तेरा इश्क़ समझना आसान नहीं।
तेरा इश्क़ मेरा फ़ितूर है,
तेरी रुसवाई भी मंज़ूर है,
तेरी मुस्कान मैं वजह नहीं,
तू नाराज़ मेरा क़ुसूर है,
ऐ साक़ी, तेरा इश्क़ समझना आसान नहीं।
सहर तुझसे, तेरी ही हर शाम,
तू ही बक्श देता है कभी ये जान,
तेरे ही दर पे सजदा सलाम,
तेरे ही लबों से ज़हर का जाम,
ऐ साक़ी, तेरा इश्क़ समझना आसान नहीं।