ये जो जज़्बातों में बह कर,
राब्ता क़ायम किया था हमने,
इस मरासिम ने तुझको क्या दिया?
कुछ भी नहीं।
इस मरासिम ने मुझको क्या दिया?
कुछ भी नहीं।
पर हाँ, खुदगर्ज़ निकला ये राब्ता,
न तुझसे न मुझसे वफ़ा निभाई,
तुझसे तेरा सुकून ले गया,
मुझसे मेरी ज़िंदगी।