पुरानी तस्वीरों से,
एक रूहानी रब्त है।
काग़ज़ पर छप चुकी ये तस्वीरें,
अब बदली नहीं जा सकती,
ना चेहरा और रोशन हो सकता है,
ना आँखों में चमक बढ़ाई जा सकती है,
ना गालों को और गुलाबी करने की कोई तरकीब,
ना पीछे की हलचल को छिपाने का तरीक़ा।
बस जो है सो है।
किसी जगह खड़े रह कर,
इब्तिदा-ए-सफ़र की ओर देखना,
तय किए रास्ते का एहसास कराता है,
और उस पल में,
सालों का सफ़र सिमट कर रह जाता है।